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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[श्रीकान्त जोशी ]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
रोटी रोटी रोटी
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सबमें अपनेपन की माया
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
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अपने पन में जीवन आया
रोटी रोटी रोटी।
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जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारी
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सहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारी
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उधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसे
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महाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसे
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चेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटी!
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रोटी रोटी रोटी।
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पैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबा
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बिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभा
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जमा रहे हैं बेटा-बेटी, दौलत सत्ता-गोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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बर्फ़ हिमालय की चोटी की मुझको दिखती काली
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काली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे ताली
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मैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
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जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
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रोटी रोटी रोटी।
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया