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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''दीपावली <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शिवप्रसाद जोशी]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
काट लूंगी तुम्हारी उंगलियाँ
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खा जाऊंगी तुम्हें
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<div style="text-align: center;">
समझे तुम
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
अपने सिर से मेरा सिर न टकराओ
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</div>
ये बताओ कब आओगे
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कहाँ हो तुम
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
और ये हँस क्यों रहे हो बेकार में
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
तुमने एक उपहार भेजा अच्छा लगा
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अपरिचित पास आओ
तुमने एक पोशाक भेजी अच्छी लगी
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लेकिन तुम इतनी दूर क्यों हो
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
इतने पास हो और फ़ौरन क्यों नहीं चले आते
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
ये कम्प्यूटर तुम्हारा ही तो है
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
जहाज़ के टायर नहीं होते
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
और वे चलते हैं ज़मीन पर
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
मेरी गुड़िया का आज जन्मदिन है
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
गणेश को सारे लड्डू न खिलाओ माँ
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मुझे भी खाना है
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सबमें अपनेपन की माया
और अब बाबा से तो मैं नहीं करूंगी बात
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अपने पन में जीवन आया
बस यह कहकर हटती है
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</div>
बेटी
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</div></div>
पिता से इंटरनेट टेलीफ़ोनी करती हुई
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एक अचरज और उलार में निहारती हुई
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इतने क़रीब उस दुष्ट मनुष्य को
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और जो है इतना दूर
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मैं गई फुलझड़ी जलाने
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मैं गई अनार फोड़ने
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बाबा इनकी रंगतों में मेरा अफ़सोस देखना
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मैं किससे कहूँ मन की बात
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तुम्हें मैं छोड़ूंगी नहीं आना तुम।
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</pre>
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<!----BOX CONTENT ENDS------>
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया