भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 159 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <div | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | < | + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> | |
− | + | ||
− | + | <div style="text-align: center;"> | |
− | + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] | |
− | + | </div> | |
− | + | ||
− | + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> | |
− | + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार | |
− | + | अपरिचित पास आओ | |
− | + | ||
− | + | आँखों में सशंक जिज्ञासा | |
− | + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा | |
− | + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं | |
− | + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा | |
− | + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के | |
− | + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ | |
− | + | ||
− | + | सबमें अपनेपन की माया | |
− | + | अपने पन में जीवन आया | |
− | + | </div> | |
− | + | </div></div> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | </div> | + |
19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
रचनाकार: त्रिलोचन
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ
आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ
सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया