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18:48, 22 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तुम तो कवि हो
लिख लोगे कविताएँ
अपना दुख लोग देखेंगे तुम्हारे दुख में
तुम गायक ठहरे
गा दोगे सबके आगे
तुम्हारे स्वर के संग भीगेंगी दूसरी भी आँखें
तुम चितेरे
अपनी लकीरों से दिखा दोगे वह भी कोना
जहाँ तक जाती नहीं धूप जो कभी नहीं दिखता
पर मैं करूँ क्या
जिसे दिल मिला बस एक सीधा-सादा
और इतना गुबार
जिसे खोने का उतना ही गहरा अहसास
मगर जाहिर करने का कोई हुनर नहीं पास।