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अकथ / प्रेमरंजन अनिमेष
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तुम तो कवि हो
लिख लोगे कविताएँ
अपना दुख लोग देखेंगे तुम्हारे दुख में
तुम गायक ठहरे
गा दोगे सबके आगे
तुम्हारे स्वर के संग भीगेंगी दूसरी भी आँखें
तुम चितेरे
अपनी लकीरों से दिखा दोगे वह भी कोना
जहाँ तक जाती नहीं धूप जो कभी नहीं दिखता
पर मैं करूँ क्या
जिसे दिल मिला बस एक सीधा-सादा
और इतना गुबार
जिसे खोने का उतना ही गहरा अहसास
मगर जाहिर करने का कोई हुनर नहीं पास।