Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
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| + | धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित | ||
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| − | + | प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया, | |
| − | + | सांसों की समाधि सा जीवन, | |
| − | + | मसि-सागर का पंथ गया बन | |
| − | + | रुका मुखर कण-कण स्पंदन, | |
| − | + | इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो! | |
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| − | + | झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी | |
| − | + | आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी, | |
| − | + | जब तक लौटे दिन की हलचल, | |
| − | + | तब तक यह जागेगा प्रतिपल, | |
| − | + | रेखाओं में भर आभा-जल | |
| − | + | दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो! | |
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| − | रेखाओं में भर आभा-जल | + | |
| − | दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!< | + | |
10:58, 11 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!
चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!
पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!
झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी
आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,
जब तक लौटे दिन की हलचल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!