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<!----BOX CONTENT STARTS------>
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<table width=100% style="background:transparent">
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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''परसाई जी की बात <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नरेश सक्सेना]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
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मैंने सुनाई अपनी कविता
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और पूछा
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क्या इस पर ईनाम मिल सकता है
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"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"
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सुनकर मैं सन्न रह गया
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क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता
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की अध्यक्षता करने जा रहे थे
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आज चारों तरफ़ सुनता हूँ
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<div style="text-align: center;">
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
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</div>
लेते हैं हाथों-हाथ
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सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता
+
  
तो शक होने लगता है  
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
परसाई जी की बात पर नहीं
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपनी कविता पर
+
अपरिचित पास आओ
/pre>
+
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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</div>
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</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया