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"मीरा के प्रभु गिरधर नागर / मीराबाई" के अवतरणों में अंतर
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ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।<br> | ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।<br> |
20:13, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूँ कैसे जाय।।
ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाय।।
ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूँ चढ्यो न जाय।
पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।।
कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार।
हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।