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"आँगन गायब हो गया / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया | घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया | ||
− | + | शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया । | |
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त्यौहारों का गला दबाया | त्यौहारों का गला दबाया | ||
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बदसूरत महँगाई ने | बदसूरत महँगाई ने | ||
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आँख मिचोली हँसी ठिठोली | आँख मिचोली हँसी ठिठोली | ||
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छीना है तन्हाई ने | छीना है तन्हाई ने | ||
− | + | फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया । | |
− | फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो | + | |
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शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके | शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके | ||
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गाँव अभागे दौड़ पड़े | गाँव अभागे दौड़ पड़े | ||
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रंगों की परिभाषा पढ़ने | रंगों की परिभाषा पढ़ने | ||
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कच्चे धागे दौड़ पड़े | कच्चे धागे दौड़ पड़े | ||
+ | चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया । | ||
− | + | नींद हमारी खोई-खोई | |
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गीत हमारे रूठे हैं | गीत हमारे रूठे हैं | ||
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रिश्ते नाते बर्तन जैसे | रिश्ते नाते बर्तन जैसे | ||
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घर में टूटे-फूटे हैं | घर में टूटे-फूटे हैं | ||
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− | आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो | + | </poem> |
13:01, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया ।
त्यौहारों का गला दबाया
बदसूरत महँगाई ने
आँख मिचोली हँसी ठिठोली
छीना है तन्हाई ने
फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया ।
शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके
गाँव अभागे दौड़ पड़े
रंगों की परिभाषा पढ़ने
कच्चे धागे दौड़ पड़े
चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया ।
नींद हमारी खोई-खोई
गीत हमारे रूठे हैं
रिश्ते नाते बर्तन जैसे
घर में टूटे-फूटे हैं
आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो गया ।।