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युग-पुरुष / माखनलाल चतुर्वेदी

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:बने सहायक।
तेरी असि-सी लटक चलें कृष्णा कावेरी,
आज सृजन में होड़ लगे विधना से तेरी।
लिख-लिख तू ओ तपी जगा उन्मत्त जमाना
जिसने ऊँचा शीश किये जग को पहचाना।
:तू हिमगिरि से उठा
:कुमारी तक लहराया,
:रतनाकर ले आज
:चरण धोने को आया।
उठ ओ युग की अमर-साँस, कृति की नव-आशा,
उठ ओ यशोविभूति, प्रेरणा की अभिलाषा,
तेरी आँखों सजे विश्व की सीमा-रेखा,
अंगुलियों पर रहे, जगत की गति का लेखा।
 '''रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुरखण्डवा-१९४४१९२९
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