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"वैषम्य / अभियान / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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नभ में चाँद निकल आया है ! | नभ में चाँद निकल आया है ! | ||
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::जग में दुख-राग समाया है ! | ::जग में दुख-राग समाया है ! | ||
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14:23, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
नभ में चाँद निकल आया है !
दुनिया ने अपने कामों से
पर, विश्राम नहीं पाया है !
नभ में चाँद निकल आया है !
कुछ यौवन के उन्मादों में
भोग रहे हैं जीवन का सुख,
मदिरा के प्यालों की खन-खन
में उन्मत्त पड़े हैं हँसमुख,
वे कहते हैं, किसने इतना
जगती में सुख बरसाया है !
:
कुछ सूनी आहें ले दुख की
सौ-सौ आँसू आज गिराते,
हत-भाग्य समझकर जीवन में
अपने को ही दोषी ठहराते,
वे कहते हैं, जाने कितना
जग में दुख-राग समाया है !
रचनाकाल: 1944