भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वैषम्य / अभियान / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नभ में चाँद निकल आया है !
दुनिया ने अपने कामों से
पर, विश्राम नहीं पाया है !
नभ में चाँद निकल आया है !

कुछ यौवन के उन्मादों में
भोग रहे हैं जीवन का सुख,
मदिरा के प्यालों की खन-खन
में उन्मत्त पड़े हैं हँसमुख,
वे कहते हैं, किसने इतना
जगती में सुख बरसाया है !
:
कुछ सूनी आहें ले दुख की
सौ-सौ आँसू आज गिराते,
हत-भाग्य समझकर जीवन में
अपने को ही दोषी ठहराते,
वे कहते हैं, जाने कितना
जग में दुख-राग समाया है !

रचनाकाल: 1944