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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''मध्य निशा का गीत<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नरेन्द्र शर्मा]]</td>
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</tr>
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    तुम उसे उर से लगा स्वर साधतीं--
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उठते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
        मूक होती कथा मेरी,
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<div style="text-align: center;">
        शून्य होती व्यथा मेरी,
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
        चीर निशि-निस्तब्धता जो,
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</div>
  
तीर-से आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
        चाँद भी पिछले पहर का,
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
        मुग्ध हो जाता, ठहराता!
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
        क्या विदा-बेला न टलती
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
यदि कहीं आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?
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सबमें अपनेपन की माया
 
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अपने पन में जीवन आया
        बनी रहती चाँदनी भी
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        गगन की हीरक-कनी भी
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        ओस बन आती अवनि पर
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चाँदनी, सुनकर सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?
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        रुद्ध प्राणों को रुलाते,
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        आज बाहर खींच लाते
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        निमिष में अंगार उर-सा
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सूर्य, यदि आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया