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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ-1<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[मनीषा पांडेय]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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रेशम के दुपट्टे में टाँकती हैं सितारा
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देह मल-मलकर नहाती हैं,
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करीने से सजाती हैं बाल
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आँखों में काजल लगाती हैं
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प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ...
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मन-ही-मन मुस्‍कुराती हैं अकेले में
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
बात-बेबात चहकती
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
आईने में निहारती अपनी छातियों को
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कनखियों से
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ख़ुद ही शरमा‍कर नज़रें फिराती हैं
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प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ...
+
  
डाकिए का करती हैं इंतज़ार
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<div style="text-align: center;">
मन-ही-मन लिखती हैं जवाब
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
आने वाले ख़त का
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</div>
पिछले दफ़ा मिले एक चुंबन की स्‍मृति
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हीरे की तरह संजोती हैं अपने भीतर
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प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ...
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प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
नदी हो जाती हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
और पतंग भी
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अपरिचित पास आओ
कल-कल करती बहती हैं
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नाप लेती है सारा आसमान
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
किसी रस्‍सी से नहीं बंधती
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ...
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
</pre>
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया