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"माँ-1 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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माँ याद आती है...
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18:11, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

धूल पर
लकीरें खींचकर
खेलती थी मैं
सखियों के साथ
इक्कट-दुक्कट
गोटियाँ...

और माँ डाँटती थी -
लड़कियाँ खेलती नहीं
माँजती हैं बरतन
फूँकती है चूल्हा
लगाती हैं झाडू
पछींटती हैं कपडा़

मैं रोती और सोचती
बहुत अन्याय हो रहा है
मुझ पर...

आज
बेटी को सिखाते
घर का काम
माँ याद आती है...