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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<div style="text-align: center;">
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: पाखण्ड-व्रत-कथा<br>
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कात्यायनी]]</td>
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</div>
</tr>
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</table>
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
कविता में यह दन्द-फन्द
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अपरिचित पास आओ
छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड।
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चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जीवन से जयचन्द... ...
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
आलोचक
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ...
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
घट-घट में व्यापि डकार
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
जय हो... जय हो... जय हो...
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जय-जय-जय-जय-जय हो...
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सबमें अपनेपन की माया
पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ
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अपने पन में जीवन आया
</pre>
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</div>
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया