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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : भूख  <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[मासूम गाज़ियाबादी ]]</td>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।
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करके नंगा ये सरे आम नचा देती है।।
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आप इन्सानी जफ़ाओं का गिला करते हैं।
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
कितनी मज़बूर है वो माँ जो मशक़्क़त करके।
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<div style="text-align: center;">
दूध क्या ख़ून भी छाती का सुखा देती है।।
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
आप ज़रदार सही साहिब--किरदार सही।
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
पेट की आग नक़ाबों को हटा देती है।।
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
भूख दौलत की हो शौहरत की या अय्यारी की।
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
हद से बढ़ती है तो नज़रों से गिरा देती है।।
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
अपने बच्चों को खिलौनों से खिलाने वालो!
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सबमें अपनेपन की माया
मुफ़लिसी हाथ में औज़ार थमा देती है।।
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अपने पन में जीवन आया
 
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भूख बच्चों के तबस्सुम पे असर करती है।
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और लड़कपन के निशानों को मिटा देती है।।
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देख ’मासूम’ मशक़्क़त तो हिना के बदले।
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हाथ छालों से क्या ज़ख़्मों से सजा देती है।।
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया