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16:16, 29 मार्च 2022 के समय का अवतरण
पता नहीं कितनी रिक्तता थी-
जो भी मुझमें होकर गुज़रा -रीत गया
पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमें
मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में
बीत गया
भलमनसाहत
और मानसून के बीच खड़ा मैं
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
मैं अपनी व्यवस्थाओं में
बीमार हूँ