भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कार्तिक पूर्णिमा / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: आज सिरा रहे हैं लोग<br /> दोने में धरकर अपने-अपने दिये<br /> अपने-अपने फू…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
आज सिरा रहे हैं लोग<br />
+
{{KKGlobal}}
दोने में धरकर अपने-अपने दिये<br />
+
{{KKRachna
अपने-अपने फूल<br />
+
|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
और मन्‍नतों की पीली रोशनी में<br />
+
|संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव
चमक रही है नदी<br />
+
}}
<br />
+
{{KKCatKavita}}
टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पॉंतें<br />
+
<Poem>
सॉंवली स्‍लेट पर<br />
+
आज सिरा रहे हैं लोग
जैसे ढाई आखर हों कबीर के<br />
+
दोने में धरकर अपने-अपने दिये
 +
अपने-अपने फूल
 +
और मन्‍नतों की पीली रोशनी में
 +
चमक रही है नदी
  
देख रहे हैं कॉंस के फूल<br />
+
टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पाँतें
खेतों की मेड़ों पर खड़े<br />
+
साँवली स्‍लेट पर
दूर से यह उत्‍सव<br />
+
जैसे ढाई आखर हों कबीर के
<br />
+
 
चमक रहा है गॉंव<br />
+
देख रहे हैं काँस के फूल
जैसे नागकेसर धान से<br />
+
खेतों की मेड़ों पर खड़े
भरा हुआ हो कॉंस का कटोरा<br />
+
दूर से यह उत्‍सव
<br />
+
 
आज भूले रहें थोड़ी देर हम<br />
+
चमक रहा है गाँव
पॉंवों में गड़ा हुआ कॉंटा<br />
+
जैसे नागकेसर धान से
और झरते रहें चॉंदनी के फूल<br />
+
भरा हुआ हो काँस का कटोरा
<br />
+
 
आज बहता रहे<br />
+
आज भूले रहें थोड़ी देर हम
हमारी नींद में<br />
+
पाँवों में गड़ा हुआ काँटा
सपनों-सा मीठा यह जल.<br />
+
और झरते रहें चाँदनी के फूल
<br />
+
 
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 09:46, 24 अप्रैल 2010 (UTC)
+
आज बहता रहे
 +
हमारी नींद में
 +
सपनों-सा मीठा यह जल।
 +
</poem>

00:42, 1 मई 2010 के समय का अवतरण

आज सिरा रहे हैं लोग
दोने में धरकर अपने-अपने दिये
अपने-अपने फूल
और मन्‍नतों की पीली रोशनी में
चमक रही है नदी

टिमटिमाते दीपों की टेढ़ी-मेढ़ी पाँतें
साँवली स्‍लेट पर
जैसे ढाई आखर हों कबीर के

देख रहे हैं काँस के फूल
खेतों की मेड़ों पर खड़े
दूर से यह उत्‍सव

चमक रहा है गाँव
जैसे नागकेसर धान से
भरा हुआ हो काँस का कटोरा

आज भूले रहें थोड़ी देर हम
पाँवों में गड़ा हुआ काँटा
और झरते रहें चाँदनी के फूल

आज बहता रहे
हमारी नींद में
सपनों-सा मीठा यह जल।