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"कौन कहता है / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा
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सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा
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ज़ख्म खाऊँगा तो कुछ और संवर जाऊँगा
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अब तो खुर्शीद को डूबे हुए सदियां गुज़रीं
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अब उसे ढ़ूंढने मैं ता-बा-सहर जाऊँगा
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ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं ‘नदीम’
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बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा
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बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा<br><br>

02:48, 14 जून 2008 के समय का अवतरण


कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूं, समन्दर में उतर जाऊँगा

तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा
घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा

तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा

अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा

तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना
वरना सोचा था कि जब चाहूँगा, मर जाऊँगा

चारासाज़ों से अलग है मेरा मेयार कि मैं
ज़ख्म खाऊँगा तो कुछ और संवर जाऊँगा

अब तो खुर्शीद को डूबे हुए सदियां गुज़रीं
अब उसे ढ़ूंढने मैं ता-बा-सहर जाऊँगा

ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं ‘नदीम’
बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा