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| + | *[[मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा  (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
01:57, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कच-देवयानी

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| रचनाकार | गुलाब खंडेलवाल | 
|---|---|
| प्रकाशक | |
| वर्ष | |
| भाषा | हिंदी | 
| विषय | |
| विधा | खंड-काव्य | 
| पृष्ठ | |
| ISBN | |
| विविध | 
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- मैं क्या उत्तर दूँ! जीवन में जिसने यह आग लगायी है (प्रथम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
- उर के आवेगों से विह्वल कच ने देखी वह छवि अजान (प्रथम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
- यह कैसा झूठा सत्य, भीरु वीरत्व, सदय निर्दयता है! (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
- तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
- मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल