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तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन
मलयानिल-से जा रहे , निठुर! कालिका कलिका की सौरभ -राशि छीन!
 
पढ़ विजन-कुमारी के उर की गोपन भाषा सहृदय स्वर से
उड़ायाद्रि-क्षितिज पर ज्यों कोई तारिका विनत-मुख ठहरी-सी  
 
करुणा, दुःखदुख, ईर्ष्या, रोष-विभा परिवर्तित जिसके क्षण-क्षण की
भावों के अभिनय में चित्रित नैराश्य-व्यथा-सी जीवन की
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