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हजार-हजार रंगों का | हजार-हजार रंगों का |
04:57, 9 मई 2011 के समय का अवतरण
थूं अर म्हैं पाळ्यो
हजार-हजार रंगां रो
एक सुपनो।
थारी अर म्हारी दीठ रो
थारै अर म्हारै सुपनां रो
एक घर हो
जिको अबै धरती माथै
कदैई नीं चिणीजैला।
मा कैवै-
मूरखता है
घर थकां रिंधरोही मांय हांडणो।
बाळ दे- नुगरा सुपनां नै
जिका दिरावै थाकैलो
अर करावै
बिरथा जातरा।
कविता का हिंदी अनुवाद
तुमने और मैंने पाला
हजार-हजार रंगों का
एक सपना ।
तुम्हारी और मेरी निगाहों का
तुम्हारे और मेरे ख्वाबों का
एक घर हो
जो अब धरती पर
नहीं बनेगा कभी ।
मां कहती है-
बेवकूफी है
घर होते बियाबान में भटकना ।
आग लगा दो-
ऐसे नुगरे सपनों को
जो थका डालते हैं
और करवाते हैं
व्यर्थ यात्रा ।
अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा