"पीपल की छाँव / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=जगदीश व्योम | |रचनाकार=जगदीश व्योम | ||
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 29: | पंक्ति 28: | ||
सृष्टि ने ये कैसा अभिशप्त बीज बोया | सृष्टि ने ये कैसा अभिशप्त बीज बोया | ||
− | व्योम की व्यथा को निरख | + | व्योम की व्यथा को निरख इन्द्रधनुष रोया |
प्यासे को दे अंजुरी भर न पानी | प्यासे को दे अंजुरी भर न पानी | ||
भगीरथ का करें उपहास | भगीरथ का करें उपहास | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 35: | ||
माना कि अंत हो गया है वसंत का | माना कि अंत हो गया है वसंत का | ||
संभव है पतझर यही हो बस अंत का | संभव है पतझर यही हो बस अंत का | ||
− | सारंग न | + | सारंग न ओढ़ो उदासी की चादर |
लौटेगा मधुमास | लौटेगा मधुमास | ||
फिर क्यों होता बटोही उदास | फिर क्यों होता बटोही उदास | ||
अब मत हो तू बटोही उदास | अब मत हो तू बटोही उदास | ||
</poem> | </poem> |
10:41, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
पीपल की छांव निर्वासित हुई है
और पनघट को मिला वनवास
फिर भी मत हो बटोही उदास
प्रात की प्रभाती लाती हादसों की पाती
उषा किरन आकर सिंदूर पोंछ जाती
दाने की टोह में फुदकती गौरैया का
खंडित हुआ विश्वास
फिर भी मत हो बटोही उदास
अभिशापित चकवी का रात भर अहंकना
मोरों का मेघों की चाह में कुहकना
कोकिल का कुंठित कलेजा कराह उठा
कुहु कुहु का संत्रास
फिर भी मत हो बटोही उदास
सूखी सूखी कोंपल हैं आम नहीं बौरे
खुले आम घूम रहे बदचलनी भौंरे
माली ने दो घूंट मदिरा की ख़ातिर
गिरवी रखा मधुमास
फिर भी मत हो बटोही उदास
सृष्टि ने ये कैसा अभिशप्त बीज बोया
व्योम की व्यथा को निरख इन्द्रधनुष रोया
प्यासे को दे अंजुरी भर न पानी
भगीरथ का करें उपहास
फिर भी मत हो बटोही उदास
माना कि अंत हो गया है वसंत का
संभव है पतझर यही हो बस अंत का
सारंग न ओढ़ो उदासी की चादर
लौटेगा मधुमास
फिर क्यों होता बटोही उदास
अब मत हो तू बटोही उदास