Last modified on 19 जुलाई 2018, at 20:59

"अब तो मज़हब / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
}} {{KKVID|v=KOpowKs0vVQ}}
+
}}  
 
+
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
 
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
 
 
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
 
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
 
 
  
 
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
 
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
 
 
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
 
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
 
 
  
 
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी  
 
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी  
 
 
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
 
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
 
 
  
 
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए  
 
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए  
 
 
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
 
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
 
 
  
 
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
 
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
 
 
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
 
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
 
 
  
 
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे  
 
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे  
 
 
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
 
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
 
 
  
 
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
 
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
 
 
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
 
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
 +
</poem>

20:59, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।

जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।

प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।

गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।