"काले बादल / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | |
− | + | |संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्रानंदन पंत | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | {{KKCatGeet}} | |
+ | <poem> | ||
सुनता हूँ, मैंने भी देखा, | सुनता हूँ, मैंने भी देखा, | ||
− | |||
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा! | काले बादल में रहती चाँदी की रेखा! | ||
− | + | :काले बादल जाति द्वेष के, | |
− | काले बादल जाति द्वेष के, | + | :काले बादल विश्व क्लेश के, |
− | + | :काले बादल उठते पथ पर | |
− | काले बादल विश्व क्लेश के, | + | :नव स्वतंत्रता के प्रवेश के! |
− | + | ||
− | काले बादल उठते पथ पर | + | |
− | + | ||
− | नव स्वतंत्रता के प्रवेश के! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
सुनता आया हूँ, है देखा, | सुनता आया हूँ, है देखा, | ||
− | |||
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा! | काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा! | ||
− | + | :आज दिशा हैं घोर अँधेरी | |
− | आज दिशा | + | :नभ में गरज रही रण भेरी, |
− | + | :चमक रही चपला क्षण-क्षण पर | |
− | नभ में गरज रही रण भेरी, | + | :झनक रही झिल्ली झन-झन कर! |
− | + | ||
− | चमक रही चपला क्षण-क्षण पर | + | |
− | + | ||
− | झनक रही झिल्ली झन-झन कर | + | |
− | + | ||
− | + | ||
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका | नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका | ||
− | |||
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा। | काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा। | ||
− | + | :काले बादल, काले बादल, | |
− | काले बादल, काले बादल, | + | :मन भय से हो उठता चंचल! |
− | + | :कौन हृदय में कहता पलपल | |
− | मन भय से हो उठता चंचल! | + | :मृत्यु आ रही साजे दलबल! |
− | + | ||
− | कौन हृदय में कहता | + | |
− | + | ||
− | मृत्यु आ रही साजे दलबल! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा! | आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा! | ||
− | |||
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा! | काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा! | ||
+ | :मुझे मृत्यु की भीति नहीं है, | ||
+ | :पर अनीति से प्रीति नहीं है, | ||
+ | :यह मनुजोचित रीति नहीं है, | ||
+ | :जन में प्रीति प्रतीति नहीं है! | ||
− | + | :देश जातियों का कब होगा, | |
− | + | :नव मानवता में रे एका, | |
− | + | :काले बादल में कल की, | |
− | + | ::सोने की रेखा! | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | देश जातियों का कब होगा, | + | |
− | + | ||
− | नव मानवता में रे एका, | + | |
− | + | ||
− | काले बादल में कल की, | + | |
− | + | ||
− | सोने की रेखा! | + |
12:38, 1 जून 2010 के समय का अवतरण
सुनता हूँ, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!
काले बादल जाति द्वेष के,
काले बादल विश्व क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नव स्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
आज दिशा हैं घोर अँधेरी
नभ में गरज रही रण भेरी,
चमक रही चपला क्षण-क्षण पर
झनक रही झिल्ली झन-झन कर!
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।
काले बादल, काले बादल,
मन भय से हो उठता चंचल!
कौन हृदय में कहता पलपल
मृत्यु आ रही साजे दलबल!
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा!
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा!
मुझे मृत्यु की भीति नहीं है,
पर अनीति से प्रीति नहीं है,
यह मनुजोचित रीति नहीं है,
जन में प्रीति प्रतीति नहीं है!
देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की,
सोने की रेखा!