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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : सड़कवासी राम!<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[हरीश भादानी]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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सड़कवासी राम!
+
  
न तेरा था कभी
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
न तेरा है कहीं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
रास्तों दर रास्तों पर
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पाँव के छापे लगाते ओ अहेरी
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खोलकर
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मन के किवाड़े सुन
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सुन कि सपने की
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किसी सम्भावना तक में नहीं
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तेरा अयोध्या धाम।
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सड़कवासी राम!
+
  
सोच के सिर मौर
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<div style="text-align: center;">
ये दसियों दसानन
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
और लोहे की ये लंकाएँ
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</div>
कहाँ है कैद तेरी कुम्भजा
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खोजता थक
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बोलता ही जा भले तू
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कौन देखेगा
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सुनेगा कौन तुझको
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ये चितेरे
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आलमारी में रखे दिन
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और चिमनी से निकलती शाम।
+
सड़कवासी राम!
+
  
पोर घिस घिस
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
क्या गिने चौदह बरस तू
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
गिन सके तो
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अपरिचित पास आओ
कल्प साँसों के गिने जा
+
 
गिन कि
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
कितने काटकर फेंके गए हैं
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
ऐषणाओं के पहरूए
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
ये जटायु ही जटायु
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
और कोई भी नहीं
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
संकल्प का सौमित्र
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
अपनी धड़कनों के साथ
+
 
देख वामन सी बड़ी यह जिन्दगी
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सबमें अपनेपन की माया
कर ली गई है
+
अपने पन में जीवन आया
इस शहर के जंगलों के नाम।
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</div>
सड़कवासी राम!
+
</div></div>
</pre>
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<!----BOX CONTENT ENDS------>
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया