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<table width=100% style="background:transparent">
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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : पर आँखें नहीं भरीं<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शिवमंगल सिंह ‘सुमन’]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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कितनी बार तुम्हें देखा
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पर आँखें नहीं भरीं।
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सीमित उर में चिर-असीम
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
सौंदर्य समा न सका
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग
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मन रोके नहीं रुका
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यों तो कई बार पी-पीकर
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जी भर गया छका
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एक बूँद थी, किंतु,
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कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी।
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कितनी बार तुम्हें देखा
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पर आँखें नहीं भरीं।
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शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी
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<div style="text-align: center;">
कण-कण में बिखरी
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
मिलन साँझ की लाज सुनहरी
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</div>
ऊषा बन निखरी,
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हाय, गूँथने के ही क्रम में  
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
कलिका खिली, झरी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
भर-भर हारी, किंतु रह गई
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अपरिचित पास आओ
रीती ही गगरी।
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कितनी बार तुम्हें देखा
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
पर आँखें नहीं भरीं।
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
</pre>
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया