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"काफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना  
 
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सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना  
 
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चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना  
 
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उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना  
 
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घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना  
 
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17:24, 18 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना

है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना
मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना

सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना
सब चाहते हैं वरना तुझ पर सवार होना

चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना

लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना