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क्या हो गया कबीरों को / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
क्या हो गया कबीरों को
रचनाकार | शेरजंग गर्ग |
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प्रकाशक | मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली - 110032 |
वर्ष | 2003 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- ग़लत समय में सही बयानी / शेरजंग गर्ग
- खुद से रूठे हैं हम लोग / शेरजंग गर्ग
- आदमी हर तरह लाचार है / शेरजंग गर्ग
- सतह के समर्थक समझदार निकले / शेरजंग गर्ग
- आदमी की अज़ीब सी हालत है / शेरजंग गर्ग
- हौंसलों में फ़कत उतार सही / शेरजंग गर्ग
- आवाज़ आ रही है / शेरजंग गर्ग
- मत पूछिए क्यों / शेरजंग गर्ग
- कोई शहर गुमशुदा है / शेरजंग गर्ग
- काफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग
- दर्द की चाशनी है / शेरजंग गर्ग
- मेरे समाज की हालत / शेरजंग गर्ग
- स्वच्छ, सजग अधिकार कहाँ / शेरजंग गर्ग
- सब करार को तरसे / शेरजंग गर्ग
- काँच निर्मित घरों के / शेरजंग गर्ग
- ऐसी हालत मे क्या किया जाए / शेरजंग गर्ग
- हम क्यों न सबको ठीक तरज़ू पे तोलते / शेरजंग गर्ग
- बुझ गई रोशनी / शेरजंग गर्ग
- चोटियों में कहाँ गहराई है / शेरजंग गर्ग
- खुश हुए मार कर ज़मीरों को / शेरजंग गर्ग
- जब पूछ लिया उनसे / शेरजंग गर्ग
- न पूछिए हम कहाँ से / शेरजंग गर्ग
- आप कहने को बहुत ज्यादा बड़े है / शेरजंग गर्ग
- चन्द सिक्को की खुराफ़ात से क्या होना है / शेरजंग गर्ग
- नर्म रहकर न यहाँ बैठना, न चलना होगा / शेरजंग गर्ग
- महाजनो के ऊँचे तर्क / शेरजंग गर्ग
- सारे जलते प्रश्न खो गए / शेरजंग गर्ग
- हारे पहुँचे हुए वकील / शेरजंग गर्ग
- पा गए लोग बड़े पद प्यारे / शेरजंग गर्ग
- देश को शौक से खाते रहिए / शेरजंग गर्ग
- देस-परदेस में जनतंत्र का हंगामा है / शेरजंग गर्ग
- हम तिकड़मों के बल पर शासन सम्भालते हैं / शेरजंग गर्ग
- देश चारो ओर धू-धू जल रहा है / शेरजंग गर्ग
- गम का पर्वत, तम का झरना / शेरजंग गर्ग
- लोग क्यो व्यर्थ हमसे जलते है / शेरजंग गर्ग
- मंज़िलो की नज़र में रहना है / शेरजंग गर्ग
- ज़िन्दगी-सी यों ज़िन्दगी भी नहीं / शेरजंग गर्ग
- आपको खास जगह जाना है / शेरजंग गर्ग
- मेरा सवाल है, न तुम्हारा सवाल है / शेरजंग गर्ग
- होश की बात बड़ी बात है / शेरजंग गर्ग
- एक खास काम कर रहा है आम आदमी / शेरजंग गर्ग
- ये जो कुछ ज़ख़्म खिले है यारों / शेरजंग गर्ग
- साल आकर बड़ी तेज़ी से गुज़र जाते है / शेरजंग गर्ग
- सादगी की मिसाल हो तुम तो / शेरजंग गर्ग
- नयन हैं नशीले नज़रों से परिचित / शेरजंग गर्ग
- तुम्ही मिल गए हो डगर के बहाने / शेरजंग गर्ग
- न करता शिकायत ज़माने से कोई / शेरजंग गर्ग
- भ्रमर को मिला जब सुमन का निमंत्रन / शेरजंग गर्ग
- तुम अगर बेकरार हो जाते / शेरजंग गर्ग
- दूर बैठा हूँ हर हक़ीक़त से / शेरजंग गर्ग
- अब तो कहने के लिए शेष कोई बात नहीं / शेरजंग गर्ग
- फूलो की बेकरार निगाहों के आसपास / शेरजंग गर्ग
- सपनों की धूमिल छाया का आकार न भूलूंगा हरगिज़ / शेरजंग गर्ग
- न देखो पीर उर की पर अधर की प्यास तो देखो / शेरजंग गर्ग