Last modified on 21 मई 2011, at 01:37

देश को शौक से खाते रहिए / शेरजंग गर्ग

देश को शौक से खाते रहिए।
चैन के ढोल बजाते रहिए।

क्रांती को भ्रांती बनाते रहिए,
शांती का शोर मचाते रहिए।

एक दो मंज़िलों का घर, क्या घर,
मंज़िलें रोज़ बढाते रहिए।

तर्क सब गर्क बढ़ाकर संपर्क,
हाँ फ़क़त हाँ में मिलाते रहिए।

धर्म का मर्म समझकर दुष्कर्म,
ख़ून इंसाँ का बहाते रहिए।

क्या दया और हया अब कैसी,
बेहयायी को भुनाते रहिए।