भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नर्म रहकर न यहाँ बैठना, न चलना होगा / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
नर्म रहकर न यहाँ बैठना-चलना होगा।
वक्त को सख्त तरीको से बदलना होगा।
प्यार की बात अन्धेरों में भटक सकती है,
अब चिरागों को बहुत देर तक जलना होगा।
पर सँभलना तो ज़रूरी है, सँभल जाएँगे,
पहले खूँखार इरादों को कुचलना होगा।
हम हदों में रहें बेहद, यह सही है लेकिन,
अपनी सरहद पे मगर रोज़ टहलना होगा।
जो हमारे लिए साज़िश में रचे दुनिया ने,
उन खिलौनों से नहीं दिल का बहलना होगा।
एक ज़रूरत है मेरी क़ौम का ज़िन्दा रहना,
मौत के खूफ़िया पंजो से निकलना होगा।
देश के प्रेम का हम जाम, खूब पिएँ,
जलने वालों को फ़क़त हाथ मलना होगा।