भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्ही मिल गए हो डगर के बहाने / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
तुम्हीं मिल गए हो डगर के बहाने।
किनारा मिला है भँवर के बहाने।
टहलते-टहलते हुए पार कर लीं,
कई मज़िलें हमज़फ़र के बहाने।
पिघलने लगा है, बदलने लगा है,
किसी का हृदय चश्मेतर के बहाने।
सुना जबकी तुम याद करते हो हमको,
हुए बेखबर इस खबर के बहाने।
ज़माना ज़हर से गिला कर रहा है,
मगर हम जिए है ज़हर के बहाने।