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चोटियों में कहाँ गहराई है / शेरजंग गर्ग

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चोटियों में कहाँ गहराई है?
सिर्फ़ ऊँचाई ही ऊँचाई है।

जो भी जितनी बड़ी सच्चाई है,
उतनी ज्यादा गई झुठलाई है।

कब फकीरों ने तौर बदले हैं,
कब वज़ीरो से मात खाई है?

मंज़िले खोजती है जंगल में,
कितनी मासूम रहनुमाई है।

अब यहाँ सिर्फ तमाशे होंगे,
हर कोई मुफ्त तमाशाई है।

आप जिसको वफा समझते हैं,
वो किसी ख्वाब की परछाई है।

दोस्तो, दूरियो को दूर करो,
चीख़कर कह रही तनहाई हैं।