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देश चारो ओर धू-धू जल रहा है / शेरजंग गर्ग
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देश चारो ओर धू-धू जल रहा है।
वोट कुर्सी का तमाशा चल रहा है।
छद्म भाषा को तराशा जा रहा है,
साफ बातों का मुहूरत टल रहा है।
नवसृजन के सूत्र टूटे और बिखरे,
ध्वंस ज़िंदाबाद होकर जल रहा है।
प्रेमियों के पात्र में नफरत न ढालो,
बन्धु, इसमें मात्र गंगाजल रहा है।