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सपनों की धूमिल छाया का आकार न भूलूंगा हरगिज़ / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
सपनों की धूमिल छाया का आकार न भूलूँगा हरगिज़।
जो रूठ गया मनुहारों से वह प्यार न भूलूँगा हरगिज़॥
जीवन भर की आशाओं को जो पल दो पल में लूट गई,
मैं ऐसी निर्मम चितवन का व्यवहार न भूलूँगा हरगिज़।
मुस्कान अधर तक आती है, औ’ आँख डबडबा जाती है,
यह आँसू औ’ मुस्कानों की तकरार न भूलूँगा हरगिज़।
अपने प्राणों की बाज़ी में, जो कुछ भी मुझको आज मिली,
वह जीत न भूलूँगा हरगिज़, वह हार न भूलूँगा हरगिज़।