Last modified on 12 सितम्बर 2010, at 08:38

सारे जलते प्रश्न खो गए / शेरजंग गर्ग

सारे जलते प्रश्न खो गए, ठन्ड़ॆ-बुझे जवाबों में।
आने वाली क्रंती लिखेंगी किसका नाम किताबों में?

हर सफ़दपोशी में मिलती घनी साँवली वीरानी,
शक़्ले बिल्कुल साफ़ दीखती हँसती हुई नक़ाबों में।

मिट्टी के पुतलों में कितनी सोन्धी-सोन्धी ख़ुशबू है,
लेकिन ऐसी गंध कहाँ है, चान्दी-मढ़े ख़िताबों में।

रही नहीं यों एक रियासत, मगर सियासत बाकी है,
जोड़-तोड़ की होड़ लगी है जमकर नए नवाबों में।

मिलना एक ज़रूरत है तो आओ सचमुच मिल जाएँ,
चौराहे पर गले मिलेंगे, नहीं मिलेंगे ख़्वाबो में।