अब तो कहने के लिए शेष कोई बात नहीं।
दिन कोई दिन-सा नहीं, रात कोई रात नहीं॥
किस तरह प्रीत का अस्तित्व हो स्वीकार मुझे,
मेरा प्रतिबिम्ब भी अब आज मेरे साथ नहीं।
तुम तो रूठे हुए इस बात से परिचित हूँ मैं,
क्या है अपराध मेरा पर यह मुझे ज्ञात नहीं।
मेरी पलकों के निकट आके तो देखे कोई,
हैं घटाएँ तो बहुत, किंतु है बरसात नहीं।
दिल मेरे, देख के दुनिया को सँभल जा वरना,
जो तुझे थाम सके, ऐसा कोई हाथ नहीं।