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एक खास काम कर रहा है आम आदमी / शेरजंग गर्ग

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एक खास काम कर रहा है आम आदमी।
हर खासियत से डर रहा है आम आदमी।

पाताल में समा रहा है खास आदमी,
फुटपाथ पर उभर रहा है आम आदमी।

जिस दौर में होती है तवारीख़ सुर्ख़रू,
उस दौर से गुज़र रहा है आम आदमी।

सपने लहूलुहान हैं, आँसू हैं बेज़ुबान,
पर दर्द से मुकर रहा है आम आदमी।

ज़िन्दा है बड़ी शान से ज़िन्दा ही रहेगा,
किसने कहा कि मर रहा है आम आदमी।