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नयन हैं नशीले नज़रों से परिचित / शेरजंग गर्ग

नयन हैं नशीले नज़ारों से परिचित।
हृदय है हृदय की पुकारों से परिचित॥

तुम्हीं से रहे हम अपरिचित अपरिचित,
यों दिल है हमारा हज़ारों से परिचित।

न परिचय था तुमसे तनिक भी हमारा,
हुए हम तुम्हारे इशारों से परिचित।

चले साथ मिलकर मगर है विवशता,
किनारे नहीं हैं किनारों से परिचित।

न बगिया में पतझर का आभास होता,
अगर मन न होता बहारों से परिचित।

जवानी कभी भी विवश हो न पाती,
जो होती प्रणय के प्रहारों से परिचित।

वही दूर हमसे रहे हैं हमेशा,
नहीं जो हमारे विचारों से परिचित।

ग़ज़ल जब सुनो तो हमें याद करना,
अभी तक हो तुम गीतकारों से परिचित।