भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गम का पर्वत, तम का झरना / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
गम का पर्वत, तम का झरना।
कितना मुश्किल यहाँ ठहरना।
ग़ायब मस्ती इतनी पस्ती,
ख़ुद से ही घबराना डरना।
झूठ निबाहो, सच को टालो,
हो जाएगी, फ़ाँसी वरना।
मरना भी महसूस न होता,
कुछ यों धीमें-धीमें मरना।
लोग तुम्हे मूरख समझेंगे,
इंसानों-सी बात न करना।
एक नशा है यह तनहाई,
किसने सीखा नहीं उतरना।