भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तिकड़मों के बल पर शासन सम्भालते हैं / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तिकड़मों के बल पर शासन सम्भालते हैं।
टोपी बदल-बदल कर पगड़ी उछालते हैं।

आवाज़ में हमारी परवाज़ है गज़ब की,
मखमल के शब्दजाल में सपनों को ढालते हैं।

कोई कमाल हमसे, रहता नहीं अछूता,
हम छेद से सुई के हाथी नुकालते हैं।

हम पर यकीन करना, जीते हुए है मरना,
हम मुर्दघाट पथ के ज़िन्दा मुगालते हैं।