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हम तिकड़मों के बल पर शासन सम्भालते हैं / शेरजंग गर्ग
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हम तिकड़मों के बल पर शासन सम्भालते हैं।
टोपी बदल-बदल कर पगड़ी उछालते हैं।
आवाज़ में हमारी परवाज़ है गज़ब की,
मखमल के शब्दजाल में सपनों को ढालते हैं।
कोई कमाल हमसे, रहता नहीं अछूता,
हम छेद से सुई के हाथी नुकालते हैं।
हम पर यकीन करना, जीते हुए है मरना,
हम मुर्दघाट पथ के ज़िन्दा मुगालते हैं।