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न पूछिए हम कहाँ से / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
न पूछिए हम कहाँ से चलकर कहाँ पहुँचकर ठहर गए हैं?
हमारे सीने पे पाँव रखकर गधों के लश्कर गुज़र गए हैं।
हमारी टूटन तुम्हार वादे, मज़ाक बनकर रहे इरादे,
जो असलियत पर नज़र टिकाई सभी लबादे उतर गए हैं।
महीन बातें, हसीन बातें, बनी हैं कौड़ी की तीन बाते,
विराट पर्वत, विशाल बरगद कुछेक बौनों से डर गए हैं।
नक़ाब फेंको नक़ाबपोशो, हया ख़रीदो वतनफरोशो,
तुम्हारे बदकार कारनामें फ़िज़ाँ को बीमार कर गए हैं।