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न करता शिकायत ज़माने से कोई / शेरजंग गर्ग
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न करता शिकायत ज़माने से कोई।
अगर मान जाता मनाने से कोई॥
कफ़स तोड़कर भी पहुँचते वहाँ, जो
बुलाता हमें आशियाने से कोई।
न मेरी निगाहों से सागर छलकते,
जो तौबा न करता पिलाने से कोई।
सताए हुए दिल सताए न जाते,
अगर बाज़ आता सताने से कोई।
किसी को भी कोई न फिर याद करता,
अगर भूल पाता भुलाने से कोई।
जो चाहेगा आना, वो आएगा खु़द ही
न आएगा मेरे बुलाने से कोई।
किसी को किसी की कसक से नहीं कुछ,
न अपना मिला आज़माने से कोई।