भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छात री बात / विनोद स्वामी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>छात रै मोरै मांखर सूरज देख्यो म्हारै कानी बोल्यो- बाळ देस्यूं …)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>छात रै मोरै मांखर
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=विनोद स्वामी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
छात रै मोरै मांखर
 
सूरज देख्यो म्हारै कानी
 
सूरज देख्यो म्हारै कानी
 
बोल्यो-  
 
बोल्यो-  

17:22, 18 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

छात रै मोरै मांखर
सूरज देख्यो म्हारै कानी
बोल्यो-
बाळ देस्यूं
छात मुळकी म्हारै कानी
अर बोली-
सूत्या रैवो, सूत्या रैवो
ओ तो इयां ई करै!