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"घर-एक / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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padha guna
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baki sab rehasaya
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talhin
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Ghar hai dehon se meryadit
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घर है एक बौना जंगल
Gopniya chetna ka
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अपने पाँवों चलता
ek bada angaha sansar
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Ghar ek boana jangal
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apne paon chalata
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usmen gujar jati hain
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उसमें से गुजर जाती हैं
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पीढिय़ों की पीढिय़ाँ
sadiyon ki sadiyan
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सदियों की सदियाँ
nekiyan
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बदियाँ
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सभी।
  
samaya ki nadi ka
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समय की नदी का
udagam sathal hai ghar
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उद्ïगम स्थल है घर
  
agar Ghar Ghar nahein
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अगर घर घर नहीं
to wah dher hai
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तो वह डर है
jhuthkhoron ke ander ka der
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झूठखोरों के अन्दर का डर
waqt ke panchi
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वक्त के पंछी
tuta hua per bhi hai ghar
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टूटा हुआ पर भी है घर
sanate niket mein
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सन्नाटे निकेत में
gunjati rehati
+
गूँजती रहती
fadfadahat jisaki
+
फडफ़ड़ाहट जिसकी
barason
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बरसों
  
Ghar ek yatra hai
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घर एक  यात्रा है
  Dharamyatra hai
+
एक धर्मयात्रा
anant ki aor
+
अनन्त की ओर
  
registan mein
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रेगिस्तान में
chalata hua kafila hai Ghar
+
चलता हुआ काफिला है घर
barfani manjer mein
+
बर्फानी मंजर में
hai wah
+
है वह
ek dhruviya kabila
+
एक ध्रुवीय कबीला
apane mein akela
+
अपने में अकेला
apane mein sampurn
+
अपने में सम्पूर्ण
  
ek sath kai sajon mein bajata
+
एक  साथ कई साजों में बजता
samuhgan hai Ghar
+
समूहगान है घर
jise gata hai darakhat
+
जिसे गाता है दरख्त
aoor usaki tehniyan
+
और उसकी टहनियाँ
  
kabilon ka bhagwan hai
+
कबीलों का भगवान है
ghar
+
घर
satvikon ka
+
सात्विकों का
puja sathal
+
पूजास्थल
asatvikon ka
+
असात्विकों का
musafirkhana
+
मुसाफिरखाना
  
kabhi-kabhi besabab
+
कभी-कभी बेसबब
lo mein jalata perwana bhi hai ghar
+
लौ में जलता परवाना भी है घर
  
Ghar na aakaash hai
+
घर न आकाश है
na patal
+
न पाताल
wah hai adher
+
वह है अधर
per ant mein
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पर अन्त में
ghar bas ghar hai
+
घर बस घर है
itana bher.
+
इतना भर ।
 
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Mukesh Negi
 

12:59, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

घर एक किताब है
पेचीदा गुत्थियों वाली
ए दूसरे से जुड़े अनपढ़े
कथावृत्त हैं इसमें कलमबन्द
हर वृत्त है एक जिल्द
पर जितना सरोकार
उतना ही जाना पहचाना
पढ़ा गुना
बाकी सब रहस्य
तलहीन

घर है देहों से मर्यादित
गोपनीय चेतना का
एक बड़ा अनगाहा संसार

घर है एक बौना जंगल
अपने पाँवों चलता

उसमें से गुजर जाती हैं
पीढिय़ों की पीढिय़ाँ
सदियों की सदियाँ
नेकियाँ
बदियाँ
सभी।

समय की नदी का
उद्ïगम स्थल है घर

अगर घर घर नहीं
तो वह डर है
झूठखोरों के अन्दर का डर
वक्त के पंछी
टूटा हुआ पर भी है घर
सन्नाटे निकेत में
गूँजती रहती
फडफ़ड़ाहट जिसकी
बरसों

घर एक यात्रा है
एक धर्मयात्रा
अनन्त की ओर

रेगिस्तान में
चलता हुआ काफिला है घर
बर्फानी मंजर में
है वह
एक ध्रुवीय कबीला
अपने में अकेला
अपने में सम्पूर्ण

एक साथ कई साजों में बजता
समूहगान है घर
जिसे गाता है दरख्त
और उसकी टहनियाँ

कबीलों का भगवान है
घर
सात्विकों का
पूजास्थल
असात्विकों का
मुसाफिरखाना

कभी-कभी बेसबब
लौ में जलता परवाना भी है घर

घर न आकाश है
न पाताल
वह है अधर
पर अन्त में
घर बस घर है
इतना भर ।