"भायला / तन सिंह" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तन सिंह |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{KKCatKavita…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | मत पूछे के ठाठ भायला | + | मत पूछे के ठाठ भायला । पोळी मै खाट भायला ।। |
− | पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै । | + | पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै । |
− | रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै । | + | रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै । |
− | हान्स हान्स कामन घणी पूछती , के के गुज़री रात्यां मै । | + | हान्स हान्स कामन घणी पूछती, के के गुज़री रात्यां मै । |
− | घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै । | + | घूंघट माई लजा बीनणी, पल्लो देती दांता मै । |
− | नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला । | + | नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायला । |
पोळी मै है खाट भायला ।। | पोळी मै है खाट भायला ।। | ||
− | छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली । | + | छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली । |
− | मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली । | + | मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली । |
− | जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पाडता गैणा मै । | + | जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पाडता गैणा मै । |
− | घनै हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै । | + | घनै हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै । |
− | उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला । | + | उन नैणा मै जाळा पड़गा, देख्या करता बाट भायला । |
पोळी मै खाट भायला ।। | पोळी मै खाट भायला ।। | ||
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो । | अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो । | ||
− | दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो । | + | दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो । |
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं । | पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं । | ||
− | तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै ।। | + | तन को बळ मन को जोश झळकणो, मूंछा हाली आंटी मै ।। |
− | इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला । | + | इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला । |
पोळी मै खाट भायला ।। | पोळी मै खाट भायला ।। | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई । | हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई । | ||
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ।। | छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ।। | ||
− | चिटियो म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला । | + | चिटियो म्हारो साथी बणगो, डगमग हालै टाट भायला । |
पोळी मै है खाट भायला ।। | पोळी मै है खाट भायला ।। | ||
</poem> | </poem> |
11:29, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
मत पूछे के ठाठ भायला । पोळी मै खाट भायला ।।
पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै ।
रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै ।
हान्स हान्स कामन घणी पूछती, के के गुज़री रात्यां मै ।
घूंघट माई लजा बीनणी, पल्लो देती दांता मै ।
नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली ।
मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली ।
जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पाडता गैणा मै ।
घनै हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै ।
उन नैणा मै जाळा पड़गा, देख्या करता बाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो ।
दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो ।
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं ।
तन को बळ मन को जोश झळकणो, मूंछा हाली आंटी मै ।।
इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।
बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ्गो आख्याँ मै ।
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै ।
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई ।
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ।।
चिटियो म्हारो साथी बणगो, डगमग हालै टाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।