"भायला / तन सिंह" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो । | दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो । | ||
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं । | पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं । | ||
− | तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै ।। | + | तन को बळ मन को जोश झळकणो, मूंछा हाली आंटी मै ।। |
इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला । | इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला । | ||
पोळी मै खाट भायला ।। | पोळी मै खाट भायला ।। |
11:29, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
मत पूछे के ठाठ भायला । पोळी मै खाट भायला ।।
पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै ।
रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै ।
हान्स हान्स कामन घणी पूछती, के के गुज़री रात्यां मै ।
घूंघट माई लजा बीनणी, पल्लो देती दांता मै ।
नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली ।
मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली ।
जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पाडता गैणा मै ।
घनै हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै ।
उन नैणा मै जाळा पड़गा, देख्या करता बाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो ।
दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो ।
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं ।
तन को बळ मन को जोश झळकणो, मूंछा हाली आंटी मै ।।
इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला ।
पोळी मै खाट भायला ।।
बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ्गो आख्याँ मै ।
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै ।
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई ।
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ।।
चिटियो म्हारो साथी बणगो, डगमग हालै टाट भायला ।
पोळी मै है खाट भायला ।।