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09:43, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

बगत
थूं सांचो है
पण अबखी है
ओळखांण थारी
लखदाद थारै रूप नै।

म्हैं जाणूं सींव
मानखै री खीमता री
इतियास नै गोखणो
फगत भरम है
जिंयां कोनीं मडैं विगत
ढ़ळती रात रै सपनां री

सुतंतर हुवै हरेक छिण
जिणरी निजू मरजादा हुवै
निजू हुवै दीठ
जको हुवै बुद्ध
बो ई ओळखै
बगत रै सांच नै।