अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा |
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23:18, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
बा लपर-लपर कर‘र बूक सूं
तातो लोही पीवै
अंधार-घुप में बिजळी दांई
चमकै उणरी आंख्यां
मून मांय सरणाट बाजे
उणरी सांस
म्हैं एकलो
डरूं धूजतो
कदी उणनै तकावूं
अर कदी हाथ में भेळी करयोड़ी कवितांवां नै ।