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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा |
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23:19, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
अब छोड़ो भाईजी !
कुण गिनरत करै
इण जगती में
थारी रीस री ।
रळ सको तो
एकामेक हुय जावो
इण मुखौटा आळी भीड़ में
का पछैं म्हारै दांई
खींच लेवो मून
इण पतियारै सागै
कै कदैई तो आवैलो कोई
म्हारी पीड़ परखणियो आवै
भलांई आभै सूं।